14 मई 2024

अटकी हुई कृपा दूर कर दी

एक सप्ताह से अधिक हो गया था क्रेडिट कार्ड बनकर आए हुए. तबसे कल रात तक छह अलग-अलग जगहों पर उसी क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने की प्रक्रिया अपनाई. हर बार भुगतान प्रक्रिया पूर्ण न हो सकी. किसी न किसी कारण से भुगतान न हो पाता.

कई बार लगा कि पहली बार उपयोग कर रहे हैं सम्भव है कि ग़लत तरीक़े से कर रहे हों. कभी लगा कि नया कार्ड है हो सकता है बैंक से कुछ अलग एक्टिवेट करवाना पड़ता हो. अनुभवी लोगों से जानकारी की तो पता चला कि हम भुगतान की सही प्रक्रिया अपना रहे हैं, कोई गलती नहीं कर रहे हैं.

इसके बाद कल रात दिमाग़ घुमाया तो समझ आ गया कि कृपा कहाँ एक जगह अटकी हुई है, तभी भुगतान सफल न हो रहा. बस, आज सुबह ख़रीददारी मुहूर्त में दो फ़ाउण्टेन पेनऔर दो पुस्तकोंके ऑर्डर दिए, तत्काल भुगतान हो गया.

कल समझ आ गया था कि क्रेडिट कार्ड का पहला भुगतना अत्यंत मनपसंद सामग्री पेन या पुस्तक पर होना है. सो पेन और पुस्तक दोनों को वरीयता देते हुए अटकी कृपाको दूर किया.

 





 

11 मई 2024

चुनाव प्रचार हेतु अंतरिम जमानत

मामला चूँकि माननीय अदालत से सम्बंधित है, उसके आदेश से सम्बंधित है इस कारण समझ नहीं आता कि इस बारे में क्या लिखा जाये, क्या कहा जाये? दिल्ली के मुख्यमंत्री को अदालत द्वारा महज इस कारण अंतरिम जमानत मिल जाती है कि उनको चुनाव प्रचार करना है. समझ नहीं आता कि ये किस तरह की न्याय व्यवस्था है जहाँ जेल में बंद व्यक्ति को महज इस कारण से अंतरिम जमानत मिल जाती है कि उसे लोकसभा चुनाव में प्रचार करना है. संभवतः ये अपनी तरह का पहला मामला होगा?

बहरहाल, अदालत के आदेश पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं. बावजूद इसके सवाल मन में उभरता है कि क्या इस आधार पर कोई भी व्यक्ति अंतरिम जमानत पाने का अधिकारी हो जाता है? एक ऐसा व्यक्ति जो जेल में बंद है और वह चुनाव में उतरने के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत करता है तो क्या उसे भी अंतरिम जमानत दी जाएगी? क्या ऐसे व्यक्ति जो अभी भी जेलों में बंद हैं और वे राजनैतिक व्यक्ति नहीं हैं, तब भी क्या उनको चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी जाएगी? संभव है कि चुनाव प्रचार करना संवैधानिक अथवा मौलिक अधिकार नहीं हो किन्तु यदि माननीय अदालत किसी एक व्यक्ति को इस आधार पर राहत देती है तो फिर यह निर्णय अन्य लोगों के लिए नजीर के रूप में काम करेगा. 




 

08 मई 2024

रहें सतर्क डिजिटल अरेस्ट से

तकनीकी के फैलते जाते मकड़जाल के बीच रहते हुए उससे सुरक्षित रहना आज बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहा है. कम्प्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट आदि ने जीवन-शैली को जितना आसान बनाया है उतना ही मुसीबत से भर दिया है. सूचना प्रौद्योगिकी के इस विकास के साथ-साथ होने वाले साइबर अपराधों में वृद्धि से इनकार नहीं किया जा सकता है. यह आज के दौर में सभी को जानकारी है कि इंटरनेट के ज़रिए किए जाने वाले अपराधों को साइबर अपराध अथवा साइबर क्राइम कहते हैं. इस अपराध में कम्प्यूटर, इंटरनेट के माध्यम से वित्तीय धोखाधड़ीबैंक खाते से धन चुरानाहैकिंगअश्लीलता का प्रसार, वायरस का फैलावसॉफ़्टवेयर की चोरीदोषपूर्ण सॉफ़्टवेयर भेजकर कम्प्यूटर को ख़राब करना, किसी अन्य कम्प्यूटर नेटवर्क पर हमलापोर्नोग्राफी को बढ़ावा आदि शामिल रहता है. साइबर अपराध के तमाम सारे प्रकार में आजकल एक और प्रकार ने समाज के बीच फैलना शुरू कर दिया है, इसे साइबर अपराध की भाषा में डिजिटल अरेस्ट कहा जाता है.  

 

संभव है कि इस शब्दावली से आम आदमी परिचित न हो मगर इसके द्वारा जिस तरह का कृत्य किया जा रहा है उससे संभवतः प्रत्येक व्यक्ति का किसी न किसी रूप में सामना अवश्य ही हुआ होगा. न सही आप, आपके मित्र, रिश्तेदार, सहयोगी अथवा आसपास वाले किसी भी व्यक्ति के द्वारा ऐसा अवश्य ही सुनने में आया होगा कि उसको फोन के माध्यम से किसी के गिरफ्तार किये जाने की, उसके किसी पार्सल के गलत होने की, उसके बैंकिंग सम्बन्धी किसी समस्या के उत्पन्न होने की जानकारी दी गई होगी. इस तरह के अपराध में फोन के द्वारा बताया जाता है कि आपका बेटा, बेटी अथवा कोई अन्य रिश्तेदार पुलिस की, सीबीआई की अथवा नारकोटिक्स की हिरासत में है. उसके किसी अवैध गतिविधि में लिप्त पाए जाने की, ड्रग्स अथवा किसी अन्य नशे वाले पदार्थ के साथ पकडे जाने की खबर दूसरी तरफ से दी जाती है. इस तरह के फोन के अलावा अक्सर ऐसा फोन भी आता है जिसमें व्यक्ति के नाम से किसी पार्सल के आने की जानकारी देते हुए बताया जाता है कि उस पार्सल में आपत्तिजनक सामग्री आई हुई है अथवा विदेश से कोई अवैध सामान आया है. ऐसे फोन आने की स्थिति में दूसरी तरफ से बोलने वाला व्यक्ति खुद को पुलिस अथवा किसी प्रशासनिक विभाग का अधिकारी बताता है.

 

आजकल इस तरह के फोन कॉल आना साइबर अपराध में आम बात हो गई है. साइबर अपराध के क्षेत्र में सक्रिय अपराधियों ने इस नए तरीके की ठगी को, अपराध को बहुत बुरी तरह से फैलाया हुआ है. ऐसे मामलों में अपराधियों द्वारा तकनीक का सहारा लेते हुए पुलिस का, सीबीआई का अथवा किसी अन्य प्रशासनिक विभाग का फर्जी वीडियो बनाकर वीडियो कॉल के द्वारा इस तरह से प्रदर्शन किया जाता है मानो फोन सत्य है और किसी आधिकारिक व्यक्ति के द्वारा किया जा रहा है. ऐसे अपराधी सामान्यजन की मानसिकता को भली-भांति जानते-समझते हैं. कोई भी जनसामान्य ऐसे किसी फोन पर तत्काल घबरा जाता है जिसमें उसके किसी नजदीकी के गिरफ्तार होने की सूचना दी जाये. कानूनी पचड़े में पड़ने से घबराने वाला सामान्य व्यक्ति ऐसी किसी भी बात से बहुत दूर रहता है जो उसे किसी अवैध कृत्य में संलिप्त कर दे. इस कारण ऐसे फोन आते ही सामान्य व्यक्ति तत्काल खुद को इस परेशानी से मुक्त करवाने का मार्ग खोजने लगता है. यह मार्ग फोन करने वाला अपराधी ही उसे बताता भी है. ऐसे में फर्जी फोन अथवा वीडियो कॉल के द्वारा सामान्य व्यक्ति अपराधियों के चंगुल में फंसकर ठगी का शिकार हो जाता है. अपने नजदीकी को हिरासत से मुक्त करवाने के लिए अथवा अपने आपको किसी अवैध पार्सल का मालिक साबित न होने देने के लिए वह अपराधियों के बताये तरीके से उनको धनराशि उपलब्ध करवा देता है. 

 

आजकल इस तरह के बढ़ते अपराधों के बाद शासन, प्रशासन ने सक्रियता बढ़ाई और गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले इंडियन साइबर क्राइम कोआर्डिनेशन सेंटर ने धोखाधड़ी से जुडी एक हजार से ज्यादा आईडी को ब्लॉक किया है. यहाँ शासन, प्रशासन के साथ-साथ व्यक्ति को खुद को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है. ऐसे किसी भी फोन अथवा वीडियो कॉल आने पर खुद को संयमित रखते हुए सबसे पहले वह इत्मिनान करे कि क्या वाकई उसका कोई नजदीकी रिश्तेदार अथवा परिचित ऐसा कर सकता है जिससे वह हिरासत में आये? इसके साथ-साथ व्यक्ति यह भी ध्यान में रखे कि आजकल इस तरह के कृत्य साइबर अपराधियों द्वारा किये जा रहे हैं. ऐसे में वह तत्काल राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर शिकायत कर दे अथवा अपने नजदीकी साइबर सेल में जाकर पुलिस को, प्रशासन को इस तरह के फोन आने की जानकारी दे. डिजिटल अरेस्ट से जुड़े मामलों की अधिकता को देखते हुए प्रशासन द्वारा 1930 पर कॉल करके भी जानकारी देने की सुविधा सामान्य नागरिकों को उपलब्ध करवाई जा रही है.

 

शासन, प्रशासन के साथ-साथ हम सबको भी सतर्क रहने की आवश्यकता है. अपनी जानकारियों को, अपने व्यक्तिगत विवरणों को इंटरनेट पर, सोशल मीडिया पर शेयर करने से बचना चाहिए. जहाँ तक संभव हो अपने परिवार की जानकारियाँ भी इंटरनेट पर शेयर करने से बचना चाहिए. छोटे कदम उठाकर बड़ी परेशानी से बचा जा सकता है. 






 

04 मई 2024

गैर-भाजपाई दलों का प्रयास

जैसे-जैसे चुनाव के चरण बढ़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे चुनावी रंग-ढंग भी कुछ अलग तरह के नजर आ रहे हैं. गैर-भाजपाई दल लगातार स्वयं को इस तरह से प्रोजेक्ट करने में लगे हैं मानो समूचे चुनावी क्षेत्र में एकमात्र वही बचे हुए हैं. भाजपा के नाम पर इस तरह का दुष्प्रचार किया जा रहा है जैसे कि इस बार उसे नाममात्र की सीटें मिलने वाली हैं.

 

ऐसी स्थिति में देखकर कई बार भाजपा-विरोधियों पर, उनकी सोच पर जबरदस्त हंसी आती है. यदि चुनावी समर को ही देखें तो ये कोई पहला चुनाव नहीं है जहाँ कि भाजपा को अथवा नरेन्द्र मोदी को खुद को साबित करना हो. इससे पहले लोकसभा के दो चुनावों-2014 और 2019 में लोगों ने भाजपा को और नरेन्द्र मोदी को परख लिया है. इसी तरह से उत्तर प्रदेश विधानसभा के दो चुनावों-2017 और 2022 में भी जनता ने भाजपा को निराश नहीं किया है. इन चार चुनावों में भाजपा और मोदी की छवि स्पष्ट रूप से निखर कर सामने आई है. इसके साथ-साथ प्रदेश विधानसभा के दो चुनावों में इन छवियों में  योगी जी की छवि ने अपना सकारात्मक सहयोग भी प्रदान किया है. ऐसे में अब विरोधियों द्वारा किया जाने वाला फोटोशॉप प्रचार महज खानापूरी नजर आ रही है.

30 अप्रैल 2024

ज़िन्दगी इक सफ़र है सुहाना

अक्सर समय के गुजरने के साथ-साथ लोग ज़िन्दगी का गुजरना जोड़ लेते हैं. इस तरह का गणित न केवल जीवन का गणित बिगाड़ देता है बल्कि ज़िन्दगी को गुजारने के तरीके का समीकरण भी ख़राब कर देता है. ज़िन्दगी का गुजरना एक बात है और ज़िन्दगी को गुजारना दूसरी बात है. देखने-पढ़ने-सुनने में ये बात लगभग एक जैसी ही लग रही होगी किन्तु एक जैसी है नहीं. इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है. जीवन एक तरह की आइसक्रीम है, जो आपके हाथ में आ गई है. इसका स्वाद ले लेंगे तो स्वाद आएगा अन्यथा की स्थिति में यह पिघल कर ख़त्म हो जाएगी.

 


ज़िन्दगी भी कुछ इसी तरह की स्थिति में रहती है. ऐसा नहीं है कि ऐसा व्यक्ति की आर्थिक-सामाजिक स्थिति देखकर निर्धारित होता हो. व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, सामाजिक हो या फिर असामाजिक अथवा किसी अन्य प्रस्थिति का, ज़िन्दगी सबके साथ एक जैसा व्यवहार करती है. जन्म लेते ही उसकी गति आरम्भ हो जाती है जो मृत्यु होने तक निरंतर गतिमान रहती है. इस बीच की अवधि में व्यक्ति अपने कर्मों से ज़िन्दगी का सुख उठा लेता है और कोई व्यक्ति अपने ही कर्मों से ज़िन्दगी को दुखद बना लेता है. यहाँ समझने वाली बात यह है कि कोई भी व्यक्ति कुछ भी न करे, किसी भी तरह से अपनी सक्रियता का उदाहरण प्रस्तुत न करे तो भी एक निश्चित समयावधि के बाद उसका जीवन समाप्त हो जायेगा. इसमें उसकी क्रियाशीलता की, निष्क्रियता की कोई भूमिका नहीं रहती है.

 

बस यही हम सबको जानने-समझने की आवश्यकता है कि जिंदगी तो गुजर ही रही है, उसे गुजर ही जाने देना है या फिर गुजारना है?